हरिद्वार आपातकालीन बैठक में सभी संस्थाओं के प्रबंधक संचालकों ने किया आर-पार के संघर्ष का ऐलान
हरिद्वार 23 नवंबर। शासन/विभाग से लगातार जारी हो रहे आदेशों से प्रदेश के संस्कृत विद्यालय, महाविद्यालयों के अस्तित्व पर आ रहे संकट को देखते हुए सभी संस्थाओं के प्रबंधक और संचालकों ने आपातकालीन बैठक कर शासन के आदेश पर आक्रोश जताया। एक स्वर में कहा कि योजना को जबरन थोपा गया तो उग्र आंदोलन के लिए बाध्य होंगे। जिसकी जिम्मेदारी शासन और सरकार की होगी।
बुधवार को धर्मनगरी हरिद्वार में स्थित निर्धन निकेतन संस्कृत महाविद्यालय में प्रदेश के संस्कृत विद्यालय-महाविद्यालयों के प्रबंधकों/संस्थापक संचालकों की आकस्मिक बैठक की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्रबंधक ऋषिराम कृष्ण महाराज ने की। बैठक में प्रबंध को और संचालकों ने हाल ही में शासन प्रशासन से लगातार निर्गत हो रहे आदेश में संस्कृत विद्यालय-महाविद्यालयों के वर्गीकरण को अनोचित्यपूर्ण बताते हुए नाराजगी जताई।सभी ने एक स्वर में तय किया कि शासन द्वारा जबरन संस्कृत विद्यालय, महाविद्यालय में थोपी जा रही प्रशासन योजना हम किसी भी रूप में स्वीकार नहीं करेंगे। गरीबदासीय संस्कृत महाविद्यालय के प्रबंधक ने कहा कि हमारे संस्कृत महाविद्यालय पिछले 100 साल से अधिक समय से चल रहे हैं जिनका एक अपना संविधान है, जो 1860 सोसाइटी एक्ट में पंजीकृत है। विभाग को ऐसी क्या जरूरत पड़ गई कि वहां अलग से एक ओर प्रशासन योजना हमारे ऊपर थोप रहे हैं, जिस संविधान से यह संस्थाएं चल रही है उसमें अगर किसी प्रकार की कमी है तो उसी में क्यों नहीं सुधार किया जाए अतिरिक्त बोझ जबरदस्ती संस्थाओं के ऊपर डालना विधिसम्मत एवं न्यायोचित नहीं है। चेतन ज्योति संस्कृत महाविद्यालय के प्रबंधक स्वामी ऋषिस्वरानंद महाराज ने कहा कि हम वर्गीकरण के खिलाफ नहीं है वर्गीकरण होना चाहिए महाविद्यालय और माध्यमिक स्तर पर दो प्रकार का वर्गीकरण होना चाहिए। 2021 के आदेश में विभाग ने जिन 31 महाविद्यालयों को महाविद्यालय के रूप में मानकानुसार अर्ह पाया है, वह महाविद्यालय 2021 के बाद पृथक रूप से महाविद्यालय संचालित हो रहे हैं और आज पुनः 3 वर्ष बाद उनको माध्यमिक कक्षाएं चलाने के लिए बाध्य किया जा रहा है यह कैसे संभव होगा। इतना ही नहीं जिन विद्यालयों को वर्ष 2008 और 2010 में विभाग द्वारा निर्गत शासनादेशों के क्रम में इंटरमीडिएट स्तर तक की वित्तीय स्वीकृति प्रदान की गई थी । उन शासनादेशों के निर्देशानुसार कई विद्यालयों में 7600 ग्रेड पे यानी इंटरमीडिएट स्तर के प्रधानाचार्य नियुक्त भी हुए हैं जिनमे कुछ सेवारत है और कुछ सेवानिवृत भी हो गए हैं । आज उन विद्यालयों को पुनः जूनियर स्तर का विद्यालय बना दिया गया है क्या यह नियम विरुद्ध नहीं है ? इसको कैसे स्वीकार जा सकता है ऋषिरामकृष्ण महाराज ने कहा कि विभाग संस्थाओं को उन्नत करने की बजाय अवनत कर रहा है जो बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण है वर्गीकृत महाविद्यालयों जो स्थायी शिक्षक उच्चशिक्षा के मानकों पर स्थायी रूप से सेवारत है उनको उच्चशिक्षा का सेवालाभ देने की बजाय उनको नियम विरुद्ध इंटरमीडिएट का शिक्षक बताया जा रहा है । गुरुरामराय संस्कृत महाविद्यालय देहरादून के अध्यक्ष चंद्र मोहन सिंह पयाल ने कहा कि जिन महाविद्यालयों 1981 से प्रोफेसर/सहायक प्रोफेसर के पद सृजित एवं अनुदानित है वह महाविद्यालय अब विद्यालय कैसे हो सकते हैं सरकार अपने ही पूर्व आदेशों का बिना अध्ययन किये जो मन में आ रहा है अनर्गल आदेश निर्गत कर रहा है ऐसा प्रतीत होता है कि निदेशालय स्तर पर बैठे अधिकारी शासन को गलत सूचना का प्रेषण कर रहे हैं जिस कारण इस प्रकार के आदेश निर्गत हो रहे हैं । सभी प्रबंधकों ने एक स्वर में कहा कि संस्कृत शिक्षा विभाग अपने आदेशों मे तत्काल संशोधन करें जो महाविद्यालय स्वतंत्र रूप से केवल महाविद्यालय स्तर पर संचालित हो रहे हैं उनके लिए पृथक आदेश जारी हो उनमें माध्यमिक कक्षाओं को चलाने की बाध्यता ना हो। शेष जो विद्यालय वर्षों से इंटरमीडिएट स्तर तक चल रहे हैं उन सभी विद्यालयों को इंटरमीडिएट स्तर तक की वित्तीय स्वीकृति प्रदान हो तथा नये पदों का सृजन कर अध्यापकों को न्युक्त किया जाए। जिन विद्यालयों को जूनियर हाईस्कूल दिखाया गया है उनको इंटरमीडिएट स्तर का वित्तीय स्तर प्रदान हो और प्रशासन योजना में प्रबंधकों के अनुसार आवश्यक सुधार किए जाएं तभी प्रशासन योजना स्वीकार होगी अन्यथा प्रशासन योजना बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं होगी । वैठक मै प्रदेश भर के सभी संस्कृत विद्यालयों के प्रबन्धक एवं बड़ी संख्या मे संस्कृत प्रेमी उपस्थित रहे ।