जोशीमठ 20 सितंबर। उत्तराखंड की द्वितीय राजभाषा संस्कृत के उत्थान को लेकर चिंतन शिविर में चर्चा की गई। इस दौरान संस्कृत भाषा को जन-जन की भाषा बनाने और उसके प्रचार प्रसार के लिए विद्वानों से सुझाव मांगे गए। सर्वसम्मति से देवभूमि उत्तराखंड के धार्मिक स्थलों पर संस्कृत का प्रयोग और नामपट संस्कृत भाषा में लिखे जाने का प्रस्ताव पारित किया गया।
उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार की ओर से बदरीनाथ धाम स्थित श्री काशीमठ में एक दिवसीय संस्कृत चिन्तन शिविर का आयोजन किया गया। शिविर में संस्कृत भारती के पूर्णकालिक संस्कृत प्रचारक, संस्कृत महाविद्यालय जोशीमठ के शिक्षकों, पूर्व धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल, वर्तमान धर्माधिकारी राधाकृष्ण थपलियाल, वेदपाठी रवि भट्ट समेत देश के सभी राज्यों से संस्कृत के विद्वानों ने भाग लिया। कार्यक्रम संयोजक डॉ. प्रकाश चन्द्र पन्त ने कार्यक्रम का संचालन किया। संस्कृत विद्वानों ने प्रदेश में आगामी 3, 4 वर्षों के लिए संस्कृत प्रचार-प्रसार और विकास के लिए अपने सुझाव देते हुये कहा कि हरकी पैड़ी हरिद्वार, परमार्थ निकेतन ऋषिकेश सहित राज्य के अन्य धार्मिक स्थलों में संस्कृत भाषा में भी उद्घोषणा होनी चाहिए। बदरीनाथ, केदारनाथ मंदिर आदि विश्व स्तरीय धार्मिक स्थलों पर संस्कृत में धार्मिक स्थलों की जानकारी के लिए नामपट लगाये जाना चाहिए।
आयोजक समिति के डॉ. अरुण कुमार, डॉ. अरविन्द नारायण मिश्र, बदरीनाथ केदारनाथ मन्दिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय, उपाध्यक्ष किशोर पंवार, स्थानीय कार्यक्रम संयोजक दर्वेश्वर प्रसाद थपलियाल ने सभी विद्वानों और प्रचारकों का उत्तरीय वस्त्र से समानित किया।
मौके पर अखिल भारतीय संगठन मंत्री प्रचारक जय प्रकाश गौतम, उपाध्यक्ष दिनेश कामत, अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख श्री देव पुजारी, महामंत्री सत्यनारायण भट्ट, सह संगठन मंत्री दत्तात्रेय व्रजहल्लि, प्रांत संगठन मंत्री गौरव शास्त्री, डॉ. संजीव कुमार राय, डॉ सचिन कठाले (संस्कृत सम्भाषण संदेश सम्पादक) ने सभी विद्वानों से संस्कृत भाषा के विकास एवं प्रचार प्रसार के लिए सुझाव मांगे गये।