
ऋषिकेश। भारतीय साहित्य संगम के तत्वावधान में साहित्यिक संगोष्ठी एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस आयोजन में देशभर से आए 10 वरिष्ठ साहित्यकारों एवं कवियों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. धीरेंद्र रांगड़ ने की। उन्होंने संस्था की गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए साहित्य को समाज का दर्पण बताया। वयोवृद्ध साहित्यकार शंभू प्रसाद भट्ट स्नेहिल ने मां सरस्वती की वंदना प्रस्तुत कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। तत्पश्चात उनकी कविताओं ने श्रोताओं को बांधे रखा।
कवियों की ओजस्वी प्रस्तुतियां
मुंबई से पधारे साहित्यकार मुक्तिनाथ त्रिपाठी ने “कभी खुशनुमा यादों के साथ कभी ग़मों के सैलाबों के बीच…” सुनाकर दिलों को छुआ।
डॉ. धीरेंद्र रांगड़ ने बेटी के महत्व पर रचित अपनी संवेदनशील कविता से भावुक किया।
रामपुर (मुरादाबाद) से आए कविवर शिव कुमार चंदन ने “भक्त भगवान का संबंध…” जैसी भक्ति रचनाओं से समां बांधा और बाल कविता से बच्चों की मासूमियत को उकेरा।
मनोज कुमार गुप्ता ने जीवन के संघर्षों को पंक्तियों में पिरोया।
डॉ. राजेश डोभाल की कविता “मैं दिया हूँ, झगड़ा मेरा है अंधेरों से सदा…” ने सबको सोचने पर मजबूर किया।
शिक्षक एवं साहित्यकार कृपाल सिंह शीला ने कुमाऊनी लोकगीत प्रस्तुत कर सभा को लोक संस्कृति की मिठास में डुबो दिया।
कवियों का हुआ सम्मान
वायु सेवा से सेवानिवृत्त हॉकी कोच एवं सामाजिक कार्यकर्ता देवेश्वर प्रसाद रतूड़ी ने सभी साहित्यकारों व कवियों को शाल ओढ़ाकर व स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। इस अवसर पर दीपक ध्यानी, संजय रावत, प्रेमलाल कंडवाल सहित अनेक साहित्यप्रेमी उपस्थित रहे।