ऋषिकेश। शक्ति की उपासना का महापर्व शारदीय नवरात्र 15 अक्टूबर रविवार से शुरू हो रहे हैं। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा की सुबह कलश स्थापना नहीं होगी। धर्मशास्त्र में चित्रा नक्षत्र तथा वैधृति काल में कलश स्थापन का निषेध बताया गया है। इसलिए रविवार को कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 11:38 बजे से दोपहर 12:38 बजे तक रहेगा। महाष्टमी व्रत 22 अक्टूबर को होगा।
घट स्थापना के लिए तैयारी
यदि आप घर में घट स्थापना करना चाहते हैं तो उसकी तैयारी पहले से कर लेनी चाहिए। घट स्थापना के लिए इन सामग्री की आवश्यकता पड़ेगी। ● जौ या गेहूं, एक पाव ● लाल चुनरी ● शुद्ध मिट्टी ● नारियल पानी वाला ● आम के पत्ते ● दूर्वा ● पान के पत्ते ● धूप-दीप ● फूल व माला ● कलावा ● पीतल या तांबे का लोटा ● अक्षत ● मिठाई मौसमी फल ●कुमकुम
माता के आगमन का फल शुभ तथा गमन का फल अशुभ
इस बार माता का आगमन हाथी पर होगा। इसका फल, सुवृष्टि या अधिक वर्षा है। देश-काल के लिए हाथी पर आगमन शुभ माना जाता है। वहीं, गमन मुर्गा पर हो रहा है जिसका फल आमजन में व्याकुलता, व्यग्रता आदि के रूप में दिखता है। इसलिए माता के आगमन का फल शुभ तथा गमन का फल अशुभ है।
विजयदशमी को लेकर रहेगा असमंजस
शारदीय नवरात्र आश्विन शुक्ल प्रतिपदा 15 से शुरू हो रहा है। यह 23 अक्टूबर सोमवार तक चलेगा। 23 अक्टूबर को नवमी का होम, चंडी पूजा आदि होंगे। काशी के पंचांग के अनुसार 23 अक्तूबर को विजयादशमी भी होगी। कुछ पंचांग 24 को दशमी मान रहे हैं। ऐसे में विजयदशमी को लेकर असमंजस की स्थिति रहेगी।
किस दिन क्या अर्पण करें
श्री दर्शन संस्कृत महाविद्यालय के शिक्षक और ज्योतिषाचार्य कमल डिमरी के अनुसार प्रतिपदा पर देवी को हल्दी, द्वितीया पर शक्कर, तृतीया पर लाल वस्त्र, चतुर्थी पर दही, पंचमी पर दूध, षष्ठी पर चुनरी, सप्तमी पर बताशा, अष्टमी पर पीली मिठाई, नवमी पर खीर अर्पित करना चाहिए।
धन-धान्य सुख समृद्धि के लिए करें ये पूजन
ऋषिकेश। ज्योतिषाचार्य पं. विमल भट्ट के अनुसार आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को तैल अभ्यंग, स्नानादि कर मन में संकल्प लेना चाहिए। तिथि, वार, नक्षत्र, गोत्र, नाम इत्यादि लेकर यह संकल्प करना चाहिए कि माता दुर्गा की प्रसन्नता के लिए प्रसादस्वरूप, दीर्घायु, विपुलधन, पुत्र-पौत्र, स्थिर लक्ष्मी, कीर्ति लाभ, शत्रु पराजय, सभी तरह की सिद्धियों के लिए शारदीय नवरात्र में कलश स्थापन, दुर्गा पूजा, कुंवारी पूजन करेंगे। इसके बाद गणपति पूजन, स्वस्तिवाचन, नांदीश्राद्ध, मातृका पूजन इत्यादि करना चाहिए।