ऋषिकेश 26 मार्च। शिशु हृदय शल्य चिकित्सा की सुविधा भारत में बहुत कम अस्पतालों मे उपलब्ध है। उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में यह सुविधा अब तक उपलब्ध ही नहीं थी। लिहाजा, मरीजों को दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़ जैसे महानगरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। अब अच्छी खबर यह कि एम्स ऋषिकेश में शिशु शल्य चिकित्सा सुविधा शुरू होने से उत्तराखंड व समीपवर्ती राज्यों के लोगों को काफी हद तक राहत मिलेगी।
एम्स ऋषिकेश के CTVS विभाग में हाल ही में शिशुओं के बेहद दुर्लभ और जटिलतम ऑपरेशन सफलतापूर्वक किए गए। जिससे न सिर्फ चिकित्सकीय टीम के अनुभव बल्कि संस्थान प्रबंधन की प्रतिबद्धता भी सिद्ध होती है।
बताया गया कि हरिद्वार निवासी एक 3 वर्षीय बच्ची जो कि TOF, AVSD (TET CANAL) नामक जन्मजात बीमारी से ग्रसित थी, जिसमें बच्चा नीला पड़ जाता है। बच्चे के माता-पिता बच्ची के इलाज के लिए महानगरों के सभी बड़े अस्पतालों से निराश होकर आखिरी उम्मीद लेकर एम्स ऋषिकेश आए। यहां CTVS विभाग के बाल शल्य चिकित्सक डॉक्टर अनीश गुप्ता ने बच्ची की बीमारी की संपूर्ण जांच कराने के उपरांत अपनी उनकी टीम के साथ सफलतापूर्वक उपचार को अंजाम दिया। शल्य चिकित्सा के दौरान उसके दिल के 2 वाल्व रिपेयर किए गए और 2 छेद बंद किए, साथ ही फेफड़े में खून जाने का रास्ता खोला गया। हृदय की सफल जटिल शल्य चिकित्सा के बाद अब बच्ची पूरी तरह से स्वस्थ है।
सीटीवीएस की उपविभागाध्यक्ष डॉक्टर नम्रता गौर ने बताया कि यह बच्ची DOWN SYNDROME( डाउन सिंड्रोम) से भी ग्रसित है। पहले इस तरह की बीमारियों से ग्रसित बच्चे इलाज के अभाव मे दम तोड़ देते थे मगर अब एम्स ऋषिकेश में इस तरह की बीमारियों का सफल उपचार नियमितरूप से किया जा रहा है।
क्या है TET CANAL –
डॉ. अनीष गुप्ता के अनुसार यह एक जटिल बीमारी है, जबकि DOWN SYNDROME एक जेनेटिक बीमारी है। जिससे बच्चा दिमागी तौर से कमजोर होता है। TET CANAL और DOWN SYNDROME साथ में होने से समस्या और भी जटिल हो जाती है, क्योंकि एक तरफ दिल की बीमारी और दूसरी तरफ बच्चे का मानसिकरूप से कमजोर होना। ऐसे बच्चे समय पर चिकित्सा के अभाव में खासकर कम स्वास्थ्य सुविधाओं वाले उत्तराखंड जैसे राज्यों में अक्सर ज़िंदगी से हाथ धो बैठते हैं।
उन्होंने बताया कि CTVS विभाग ने इस तरह की दुर्लभ बीमारियों की शल्य चिकित्सा पहले भी सफलतापूर्वक की है। एम्स अस्पताल में आयुष्मान भारत योजना लागू होने के चलते मरीजों को आर्थिक कारणों से भी उपचार कराने में परेशान नहीं होना पड़ता। जनसाधारण को बच्चों के इस तरह की समस्या से ग्रसित होने की स्थिति में जागरुक रहने की आवश्यकता है।