
ऋषिकेश, 9 अगस्त। गंगा तट त्रिवेणी घाट पर वैदिक ब्राह्मण महासभा ऋषिकेश ने प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी श्रावणी उपाकर्म बड़े ही श्रद्धा और परंपरागत तरीके से मनाया। यह आयोजन केशव स्वरूप ब्रह्मचारी के पावन सानिध्य में संपन्न हुआ।
कार्यक्रम की शुरुआत गंगा के पावन तट पर प्रायश्चित संकल्प और दशविधि स्नान से हुई। इसके बाद देव ऋषि और पितृ तर्पण, संध्योपासन, पंचांग पूजन, सप्तऋषि पूजन, यज्ञोपवीत पूजन और हवन (यज्ञ) का आयोजन किया गया।
श्रावणी उपाकर्म का महत्व
केशव स्वरूप ब्रह्मचारी ने प्रवचन में कहा कि श्रावणी उपाकर्म, जिसे श्रावणी पूर्णिमा भी कहा जाता है, आत्म-शुद्धि और प्रायश्चित का पर्व है। इस दिन पुराने यज्ञोपवीत को उतारकर नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है, जो ज्ञान और आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के नए संकल्प का प्रतीक है।
उन्होंने बताया कि यह दिन पिछले वर्ष के ज्ञात-अज्ञात पापों के प्रायश्चित का अवसर है। इसी दिन वेद अध्ययन पुनः प्रारंभ करने का संकल्प लिया जाता है। ऋषियों का स्मरण और तर्पण कर उनके ज्ञान मार्गदर्शन को नमन किया जाता है। यह पर्व आत्म-अध्ययन, अच्छे संस्कारों के विकास और ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है।
संस्कृत दिवस भी मनाया
इस अवसर पर संस्कृत दिवस भी मनाया गया, जिसमें भाषा के संरक्षण और प्रचार-प्रसार पर बल दिया गया।इस अवसर पर वैदिक ब्राह्मण महासभा ऋषिकेश के अध्यक्ष जगमोहन मिश्रा, महामंत्री शिव प्रसाद सेमवाल, संस्कृत भारती के क्षेत्रीय संगठन मंत्री देवेंद्र पांड्या, डॉ. जनार्दन प्रसाद, आचार्य पंकज रयाल, आचार्य राकेश भारद्वाज, नागेंद्र भद्री, राकेश लसियाल, विवेक चमोली, जितेन्द्र भट्ट, सुरेश पंत, शंकरमणि भट्ट, सौरभ सेमवाल, अमित कोठारी और परविंदर भट्ट सहित अनेक श्रद्धालु मौजूद रहे।