
ऋषिकेश, 10 अगस्त। उत्तराखंड की गोद में बसा धराली गांव इन दिनों कठिन दौर से गुजर रहा है। कभी अपने प्राकृतिक सौंदर्य, समृद्ध संस्कृति और मेहमाननवाजी के लिए मशहूर यह गांव आज रोटी, कपड़ा, मकान और मूलभूत सुविधाओं की कमी जैसी गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा है।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि उत्तराखंड की पवित्र धरती, जिसने सदियों से पूरे विश्व को शांति, सुकून और अपनत्व का संदेश दिया है, आज वह स्वयं शांति, सुकून और एकजुटता की गहरी जरूरत महसूस कर रही है।
हालांकि वे शारीरिक रूप से उत्तराखंड में मौजूद नहीं हैं, लेकिन उन्होंने बताया कि परमार्थ निकेतन में प्रतिदिन उत्तराखंड की शांति और समृद्धि के लिए विशेष यज्ञ हो रहे हैं। इसके साथ ही तीनों समय ज़रूरतमंदों को भोजन प्रसाद वितरित किया जा रहा है।
उम्मीद की लौ अब भी जल रही है
धराली की गलियों में आज भले ही सन्नाटा हो, लेकिन यहां के लोगों के संघर्ष और सपनों की चमक अब भी कायम है। कठिनाइयों के बीच भी वे अपने गाँव के पुनर्निर्माण का सपना देख रहे हैं—एक ऐसा सपना जिसमें यह गांव फिर से विकास और समृद्धि का प्रतीक बनकर उभरे। धराली का पुनर्निर्माण इस बात का सबूत होगा कि जब हम एकजुट होते हैं, तो कोई भी चुनौती हमें रोक नहीं सकती। यह गांव केवल भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि हमारे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों का प्रतीक है।
सिर्फ सरकार नहीं, समाज भी आगे आए
धराली के पुनर्निर्माण के लिए केवल प्रशासनिक प्रयास काफी नहीं होंगे। इसके लिए दान, श्रमदान और तकनीकी सहयोग के रूप में हर नागरिक का योगदान आवश्यक है। यह केवल एक गांव का पुनर्निर्माण नहीं, बल्कि एक जीवनशैली, संस्कृति और सामुदायिक आत्मविश्वास को पुनर्जीवित करने का प्रयास है।