
ऋषिकेश, 26 अगस्त। मानव, पशु और पर्यावरण के स्वास्थ्य को एक साथ जोड़ने वाली वन हेल्थ अवधारणा को मजबूत बनाने के उद्देश्य से एम्स ऋषिकेश में तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला का विषय था ‘हैंड्स ऑन वर्कशॉप फॉर डायग्नोस्टिक टेक्नीक ऑफ जूनोटिक एंड वायरल पैथोजन’।
कार्यशाला का आयोजन नेशनल वन हेल्थ प्रोग्राम फॉर प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ जूनोटिक डिजीजेस (NOHP-PCZ) और वायरल रिसर्च एंड डायग्नोस्टिक लेबोरेटरी (VRDL) के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। इसमें विभिन्न राज्यों से आए एम.एस.सी और पीएचडी छात्र, शोधार्थी तथा रिसर्च स्कॉलर्स शामिल हुए।
संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रो. मीनू सिंह ने वन हेल्थ की अवधारणा पर जोर देते हुए कहा कि आज के वैश्विक स्वास्थ्य संकटों में मानव, पशु और पर्यावरण को साथ लेकर चलना ही समाधान है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की कार्यशालाएं प्रतिभागियों को व्यावहारिक अनुभव देने के साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को सुदृढ़ करती हैं।
डीन (रिसर्च) प्रो. शैलेन्द्र हांडू ने जूनोटिक और वायरल रोगों को वैश्विक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बताया और कहा कि यह कार्यशाला इस दिशा में एक प्रभावी कदम है। माइक्रोबायोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. योगेन्द्र प्रताप माथुरिया ने जूनोटिक रोगों की पहचान में तकनीकी चुनौतियों और नवीनतम डाइग्नोस्टिक विधियों पर प्रकाश डाला।
डाॅ. शैलेश गुप्ता, डॉ. शैलेन्द्र नेगी, डॉ. दीक्षा, डॉ. प्रियंका, डॉ. अर्पित मिश्रा और डॉ. गौरव बडोनी सहित विशेषज्ञों ने वायरल सैंपलिंग, रोग प्रसार की निगरानी, डाटा एनालिसिस और क्लिनिकल एप्लिकेशन जैसे विषयों पर प्रशिक्षण सत्र लिए।
कार्यशाला को सफल बनाने में नीरज रणाकोटी, आशीष नेगी, दिक्षा कंडवाल, नीरज भट्ट, तान्या और अंकुर सहित कई सदस्यों का महत्वपूर्ण योगदान रहा।