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देहरादून/हनोल। देवभूमि उत्तराखंड की लोक संस्कृति और परंपराओं का जीवंत प्रतीक जागरा महोत्सव इस वर्ष भी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया गया। महासू देवता देवस्थानम्, हनोल में रात्रि जागरण का आयोजन हुआ और प्रातः 4 बजे हरियाली का उत्सव बड़ी धूमधाम से संपन्न हुआ।
मंदिर समिति द्वारा लगभग 15 हज़ार श्रद्धालुओं के लिए निशुल्क प्रसाद और रात्रि भोजन की व्यवस्था की गई थी, जिसका पूरा बजट महासू देवता के खजाने से वहन किया जाता है। जागरा महोत्सव न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ पर्व है बल्कि यह देवभूमि की लोक परंपरा और सामाजिक एकता का भी प्रतीक है।
यह है धार्मिक मान्यता
लोक मान्यता है कि महासू देवता भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय का अवतार हैं। जिस दिन गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है, उससे एक दिन पूर्व जागरा महोत्सव का आयोजन किया जाता है। जहां गणेश चतुर्थी पर घर-घर में गणेश मूर्ति स्थापना और पूजन का विधान है, वहीं उत्तराखंड और हिमाचल में स्थित महासू देवता मंदिरों में जागरा पर्व पर महासू देवता की पूजा की जाती है।
पौराणिक संदर्भ
स्कंद पुराण में वर्णन है कि भगवान कार्तिकेय देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति थे। पुराणों में इन्हें शक्ति और स्कंद नाम से भी जाना जाता है। दक्षिण भारत के तमिलनाडु में कार्तिकेय के कई प्रमुख मंदिर स्थित हैं, जबकि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में कार्तिक स्वामी मंदिर विशेष आस्था का केंद्र है।