देहरादून। उत्तराखंड के लिए बड़ी खबर है। विशेषज्ञ कमेटी ने उत्तराखंड समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है। संबंधित कमेटी ने दिल्ली में पत्रकारवार्ता के दौरान ऐलान किया कि यूसीसी ड्राफ्ट तैयार हो चुका है जल्द ही राज्य सरकार को सौंपा जाएगा।
गौरतलब है कि कमेटी ने 2 लाख 31 हजार सुझाव के आधार पर इस ड्राफ्ट को तैयार किया है। उत्तराखंड के सीमांत इलाके माणा में स्थानीय लोगों से सुझाव दिया गया था। इसी तरह से प्रदेश में उप समिति ने खुद 143 बैठक की। कमेटी ने 63 बैठक की 20 हजार से अधिक लोगों से मुलाकात भी की और उनके सुझाव दिए गए हैं।
उत्तराखंड में जो कस्टमर प्रैक्टिस है उसको भी इसमें जगह दी है सबसे महत्वपूर्ण बात है कि देश के अलग-अलग राज्यों में जो प्रथा चल रही है उसका भी कमेटी ने अध्ययन किया है। इसी तरह से विदेश में इस तरह से कानून है उसका भी अध्ययन किया गया। आपको बता दें कि 27 मई 2022 को राज्य सरकार ने कमेटी के गठन का नोटिफिकेशन जारी किया था। शुक्रवार 30 जून 2023 को कमेटी ने ड्राफ्ट बनाने का काम पूरा कर लिया है। जल्द ही राज्य सरकार को ड्राफ्ट मिल जाएगा। भाजपा प्रदेश प्रवक्ता नवीन ठाकुर का कहना है कि उत्तराखंड देश का पहला राज्य बनने जा रहा है जहां राज्य समान नागरिक संहिता जल्द लागू होगा।
समान नागरिक संहिता से होगा यह असर….
जनसंख्या नियंत्रण: यूसीसी में जनसंख्या नियंत्रण का भी सुझाव है। इसमें बच्चों की संख्या सीमित करने, नियम तोड़ऩे पर सरकारी सुविधाओं के लाभ से वंचित करने का सुझाव है।
शादी की उम्र: यूसीसी में सभी धर्मों की लड़कियों की विवाह योग्य उम्र एक समान करने का प्रस्ताव है। पर्सनल लॉ और कई अनुसूचित जनजातियों में लड़कियों की विवाह की उम्र 18 से कम है। यूसीसी के बाद सभी लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ सकती है।
विवाह पंजीकरण : देश में विवाह को पंजीकरण कराना अनिवार्य नहीं है। यूसीसी में सुझाव है कि सभी धर्मों में विवाह का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होगा। इसके बिना सरकारी सुविधा का लाभ नहीं दिया जाएगा।
बहुविवाह : कई धर्म और समुदाय के पर्सनल लॉ बहुविवाह को मान्यता देते हैं। मुस्लिम समुदाय में तीन विवाह की अनुमति है। यूसीसी के बाद बहु-विवाह पर पूरी तरह से रोक लग सकती है।
लिव इन रिलेशनशिपः इसके लिए घोषणा करने के बाद अभिभावकों को भी बताना होगा। साथ ही सरकार को ब्यौरा देना जरूरी हो सकता है।
हलाला और इद्दत खत्म: मुस्लिम समाज में हलाला और इद्दत की रस्म है। यूसीसी के कानून बनाकर लागू किया तो यह खत्म हो जाएगा।
तलाक : तलाक लेने के लिए पत्नी व पति के आधार अलग-अलग हैं। यूसीसी के बाद तलाक के समान आधार लागू हो सकते हैं।
भरण-पोषण: पति की मौत के बाद मुआवजा राशि मिलने के बाद पत्नी दूसरा विवाह कर लेती है और मृतक के माता-पिता बेसहारा रह जाते हैं। यूसीसी का सुझाव है कि मुआवजा विधवा पत्नी को दिया जाता है, तो बूढ़े सास-ससुर के भरण पोषण की जिम्मेदारी भी उस पर होगी। वह दूसरा विवाह करती है तो मुआवजा मृतक के माता-पिता को दिया जाएगा।
गोद लेने का अधिकार: यूसीसी के कानून बनने से मुस्लिम महिलाओं को भी बच्चा गोद लेने का अधिकार मिल जाएगा।
बच्चों की देखरेख : यूसीसी में सुझाव है कि अनाथ बच्चों की गार्जियनशिप की प्रक्रिया को आसान व मजबूत बनाया जाए।
उत्तराधिकार कानून: कई धर्मों में लड़कियों को संपत्ति में बराबर का अधिकार हासिल नहीं है। यूसीसी में सभी को समान अधिकार का सुझाव है।