ऋषिकेश 15 सितंबर। स्वस्थ भोजन की अनिवार्यता को देखते हुए फ्रंट ऑफ पैकेजिंग लेबलिंग (एफओपीएल) को लागू करने को लेकर एम्स ऋषिकेश में कार्यशाला का आयोजन किया गया। राष्ट्रीय स्तर की इस कार्यशाला में देशभर के विभिन्न चिकित्सा संस्थानों और मेडिकल काॅलेजों के विशेषज्ञ चिकित्सकों ने एफओपीएल को अनिवार्यरूप से लागू करने की मांग उठाई।
संस्थान के सीएफएम विभाग के तत्वावधान में आयोजित कार्यशाला में कहा गया कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में पैकेज्ड खाद्य पदार्थों की बढ़ती खपत के साथ, वास्तविक पोषण संबंधी जानकारी को सरल व प्रभावी तरीके से पहुंचाना और उपभोक्ताओं को स्वस्थ विकल्पों के प्रति मार्गदर्शन करना सरकार की प्रमुख नीतिगत प्राथमिकता है। वक्ताओं ने फ्रंट ऑफ पैक लेबलिंग (एफओपीएल) को सबसे प्रभावी नीति समाधान बताया और कहा कि इसके लागू हो जाने से उपभोक्ताओं को फूड पैकेट्स में चीनी, सोडियम और संतृप्त वसा के उच्च स्तर के बारे में आसानी से जानकारी मिल सकेगी।
कार्यशाला का उद्घाटन मुख्य अतिथि संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) मीनू सिंह ने किया। उन्होंने कहा कि फ्रंट ऑफ पैकेज लेबलिंग (एफओपीएएल) को एकीकृत करने से गैर-संचारी रोगों के खतरे से निपटने में मदद मिलेगी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अधिकांश ग्राहक, पैकेजिंग फूड के खाद्य पदार्थों में मौजूद विभिन्न तत्वों और उसमें मिलाई गई अन्य सामग्रियों से अनजान हैं।
खाद्य सुरक्षा और औषधि प्रशासन उत्तराखंड मुख्यालय के उपायुक्त गणेश चन्द्र कंडवाल ने एफओपीएल प्रणाली के उपभोक्ता परिप्रेक्ष्य, उद्योग परिप्रेक्ष्य और नियामक ढांचे जैसे तीन प्रमुख पहलुओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी। मौके पर ग्लोबल हेल्थ एडवोकेसी इनक्यूबेटर (जीएचएआई) के क्षेत्रीय सलाहकार डॉ. ओम प्रकाश बेरा, एपिडेमियोलॉजी फाउंडेशन ऑफ इंडिया के प्रोफेसर (डॉ.) उमेश कपिलय, राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संस्थान (एनआईएचएफडब्ल्यू), नई दिल्ली की प्रोफेसर (डॉ.) सुनीला गर्ग, एम्स ऋषिकेश की डीन एकेडेमिक प्रो. जया चतुर्वेदी, प्रो. शैलेन्द्र हांडू, प्रो. वर्तिका सक्सैना, डॉ. प्रदीप अग्रवाल, डॉ. महेंद्र सिंह, डॉ. योगेश बहुरुपी, डॉ. राकेश शर्मा आदि मौजूद रहे।